अपनी बात
बुधवार, 26 जनवरी 2011
यह कैसी विडंबना
पत्रकार जब तक जीता है, उसके जलवे रहते हैं। जिस अखबार में वह काम करता है वहां उसकी काफी पूछपरख होती है किन्तु पत्रकार जब मरता है तब उसकी क्या दशा होती है। यह एक ताजा वाक्ये में देखने को मिला है।वैसे हर आदमी को एक न एक दिन मरना ही है। इस दुनिया में जो भी आज दिख रहा है। कल नहीं रहेगा। कल किसी और का होगा फिर हमारे तुम्हारे के चक्कर में क्यों पड़ना। बात पत्रकार के मौत की हो रही थी।कारण चाहे जो भी हो वह अकाल मौत मारा गया। दोस्त यार जो उसके आसपास मंडराते थे अंतिम यात्रा में उसके नजदीक तक नहीं फटके।कारण सभी जानते थे। सबसे बुरा हाल उसके दफ्तर में हुआ। जिस कुसी पर वह बैठता था वह कुसी जला दी गई।टेबल फेंक दिया गया। कप गिलास तक तोड़ दिए गये।जो संस्थान कभी उसकी लेखनी पर उत्साहित होता था और उसे शाबाशी देता था वही उसके साथ यह व्यवहार करे समझ से परे है.
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